– राकेश अचल
मुझे आज लेबनान पर हो रहे हमलों पर लिखना था, लेकिन लिख रहा हूं लहसुन के बारे में। हमारे देश की अदालतें इतनी दरियादिल हैं कि वे एक ओर यदि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की नागरिकता के मामले की सुनवाई करती हैं तो दूसरी तरफ लहसुन पर आई याचिका की सुनवाई भी करती हैं और वो भी चीनी लहसुन के मामले की। लहसुन को हमारे यहां लशुन भी कहते हैं। लहसुन हालांकि प्याज जाति का कंद है किन्तु प्याज की गांठ होती है और लहसुन की कलियां। अदालत में विवाद उस लहसुन का है जो हमारा नहीं बल्कि चीन का है और चीनी लहसुन पर भारत सरकार ने रोक लगा रखी है, फिर भी चीन का लहसुन भारतीय बाजारों में इफरात में बिक रहा है। मामला दिलचस्प है, इसलिए मैंने दूसरे तमाम विषयों को तिलांजलि देकर लहसुन पर लिखा शुरू कर दिया।
प्रतिबंध के बावजूद चीन के खतरनाक लहसुन के धडल्ले से देश में आने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने खाद्य सुरक्षा आयुक्त और कलेक्टर को कार्रवाई करने का आदेश दिया है। फरियादी की ओर से पेश किए गए चीन के लहसुन को प्रदेश के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग के पेश हुए अफसर से सील करवा दिया। अदालत ने 15 दिन में इसकी जांच रिपोर्ट मांगी है। इलाहबाद का हाईकोर्ट सचमुच संवेदनशील है। हर मामले में संवेदनशील है। राहुल गांधी की नागरिकता के मामले में भी और चीनी लहसुन की बिक्री के मामले में भी। आपको ये जानकर हैरानी होगी की इलाहबाद हाईकोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 10.74 लाख है। देश में 25 हाईकोर्ट में से इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले में सबसे आगे है। ये राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के आंकडे हैं।
बहरहाल लहसुन पर लौटते हैं। इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा कि खाद्य सुरक्षा आयुक्त और लखनऊ के डीएम हेल्पलाइन नंबर जारी करें, जिससे लोग चीन के लहसुन की बिक्री की शिकायत उस पर दर्ज करवा सकें। कोर्ट ने इस नंबर पर मिलने वाली शिकायतों पर सख्त करवाई करने के निर्देश दिए हैं। न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खण्डपीठ ने यह आदेश स्थानीय अधिवक्ता मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर दिया। मोतीलाल ने खतरनाक चीनी लहसुन की बिक्री की प्रकाशित खबरों को याचिका के साथ लगाकर इस पर सख्त प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया था। फरियादी का कहना है कि देश में 2014 से ही इस लहसुन की बिक्री प्रतिबंधित है, इसके बावजूद बाजारों में यह खुलेआम बिक रहा है।
लहसुन भले ही हमारे यहां औषधीय माना जाता है, लेकिन कुछ लोग हैं जो इसे हाथ भी नहीं लगाते, उनके लिए लहसुन अस्पृश्य है। हमारे वैद्यजी कहते हैं कि लहसुन में रासायनिक तौर पर गंधक की आधिक्य होती है। इसे पीसने पर ऐलिसिन नामक यौगिक प्राप्त होता है जो प्रतिजैविक विशेषताओं से भरा होता है। इसके अलावा इसमें प्रोटीन, एंजाइम तथा विटामिन बी, सैपोनिन, फ्लैवोनॉइड आदि पदार्थ पाए जाते हैं। अक्सर लहसुन खली पेट खाने की सलाह दी जाती है। लहसुन को लेकर कहावते उतनी नहीं हैं जितनी प्याज को लेकर हैं। प्याज को काटा जाता है, लहसुन को छीला जाता है। लहसुन की पैकेजिंग प्रकृति ने मक्के के भुट्टे की तरह बहुत आकर्षक तरीके से की है। जाहिर है कि ये विशेष कंद है, अन्यथा इसे धरती के भीतर आलू की तरह उगने के लिए न छोड दिया जाता?
कहते हैं कि लहसुन एक दक्षिण यूरोप में उगाई जाने वाली प्रसिद्ध फसल है। भारत में लहसुन की खेती को ज्यादातर राज्यों में की जाती है, लेकिन इसकी मुख्य रूप से खेती गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु में की जाती है। इसका 50 प्रतिशत से भी ज्यादा उत्पादन गुजरात और मप्र राज्यों में किया जाता है। हमारे यहां एग्रीफाउण्ड वाइट (जी.41), यमुना वाइट (जी.1), यमुना वाइट (जी.50), जी.51, जी.282, एग्रीफाउण्ड पार्वती (जी.313) और एच.जी.1 प्रजाति का लहसुन मिलता है, लेकिन हमारे पडौसी देश चीन ने हमारे लहसुन के सामने अपना लहसुन खडा कर दिया।
आपको शायद पता हो या न हो लेकिन भारत में साल 2014 से ही प्रतिबंधित किया गया, लेकिन चाइनीज लहसुन भारतीय मण्डियों और खुदरा बाजार में धडल्ले से बेचा जा रहा है। जिस लहसुन को देशी समझकर आप अपने घर ले जा रहे हैं और दाल-सब्जी में तडका मारकर खा रहे हैं, वह सिंथेटिक रूप से खतरनाक कैमिकल्स से बना फंगस वाला चाइनीज लहसुन हो सकता है। चीनी लहसुन का अवैध व्यापार एक लम्बे अरसे से जारी है। चीन अक्सर नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते इसकी यहां डंपिंग करता है। इन दोनों ही देशों के साथ भारत लहसुन का ड्यूटी फ्री व्यापार करता है। भारत पहुंचने वाला चीनी लहसुन कई बैक्टीरिया और बीमारियों को साथ लेकर पहुंचता है। ये लोगों की सेहत पर असर डालता है। हाल में एक वायरल वीडियो में दावा किया गया है कि चीन में लहसुन ‘सीवर के पानी’ में पैदा होता है। इसे सफेद दिखाने के लिए आर्टिफिशियल तरीके से ‘ब्लीच’ किया जाता है।
आपको शायद पता न हो लेकिन हकीकत ये है कि भारत में करीब 32.7 लाख टन लहसुन का उत्पादन होता है, भारत में सबसे ज्यादा लहसुन का उत्पादन मप्र में होता है। हालांकि चीन में उत्पादन गिरने के बावजूद वह दुनिया में नंबर-1 है। चीन में हर साल करीब 2 से 2.5 करोड टन लहसुन का उत्पादन होता है, चीन के मुकाबले भारत का लहसुन थोडा छोटे आकार का होता है। वहीं इसका रेट चीन के मुकाबले काफी कम है। चीनी लहसुन की ग्लोबल मार्केट में 1250 डॉलर प्रति टन कीमत है, तो वहीं भारतीय लहसुन 450 से एक हजार डॉलर प्रति टन तक मिलता है। इसलिए भारत गरीब से लेकर अमीर देशों तक के हिसाब से लहसुन की क्वालिटी उपलब्ध करा पाता है। चीनी लहसुन की मांग अधिकतर अमेरिका और यूरोपीय देशों में है, जबकि भारत मलेशिया, थाईलैंड, नेपाल और वियतनाम को लहसुन का बडे पैमाने पर निर्यात करता है।
बावजूद इसके भारतीय चमकदार बगुलामुखी रंग की दीवानगी के फेर में पढकर चीनी लहसुन खरीद लाते हैं। दुर्भाग्य ये है कि जिस तरह हमारी सरकार चीनी घुसपैठ रोकने में नाकाम है, उसी तरह लहसुन की घुसपैठ के मामले में भी नाकाम है। प्रतिबंध के बाद भी भारत में चीनी लहसुन की उपलब्धता इसका प्रमाण है। खुद प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में चीनी लहसुन की घुसपैठ है। गुजरात के लहसुन उत्पादक इसके खिलाफ लामबंद भी हैं। अब जब चीनी लहसुन चुनावी मुद्दा बनेगा तब शायद इस मामले को सरकार गंभीरता से ले।