– राकेश अचल
फ्रांस ओलम्पिक में हमारे खिलाडी पदकों पर अपना निशाना साध रहे हैं, लेकिन हमारी सरकार के निशाने पर हमेशा की तरह मुस्लिम और उनकी संस्थाएं है। केन्द्र के निशाने पर अब मुस्लिमों को वक्फ संपतियों का रख-रखाव करने वाला वक्फ बोर्ड है। सरकार वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन कर बोर्ड की शक्तियां सीमित करना चाहती है। मुमकिन है कि आप जब ये आलेख पढ रहे हों तब वक्फ बोर्ड अधिनियम में संशोधन से जुडा बिल सरकार संसद में पेश कर रही हो, हालांकि इसको लेकर सरकार की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। लेकिन बिल की खबर आते ही हंगामा शुरू हो गया है। एआइएमआइएम से लेकर कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधा है। सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह संविधान में दिए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रहार है।
आपको पहले ये जानना होगा कि आखिर वक्फ बोर्ड है क्या? केन्द्रीय वक्फ परिषद वक्फ बोर्ड के कामकाज से संबंधित मुद्दों और देश में वक्फ के समुचित प्रशासन से संबंधित मुद्दों के बारे में परामर्श देने के लिए केन्द्रीय वक्फ परिषद की स्थापना एक स्थाई इकाई के रूप में की गई। इस बोर्ड की स्थापना भाजपा के जन्म से 16 साल पहले तत्कालीन केन्द्र सरकार ने दिसंबर 1964 में वक्फ अधिनियम 1995 के अंतर्गत की थी। वक्फ के प्रभारी केन्द्रीय मंत्री, केन्द्रीय वक्फ परिषद के 20 अन्य सदस्य होते हैं केन्द्रीय वक्फ परिषद् इन समुदायों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है इसके द्वारा लागू की जाने वाली योजनाएं हैं।
वक्फ अरबी भाषा के ‘वकुफा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है ठहरना। इसी से बना वक्फ। वक्फ एक ऐसी संपत्ति होती है, जो जन-कल्याण को समर्पित हो। इस्लाम के मुताबिक वक्फ दान का ही एक तरीका है। इस्लाम की तरह हम सनातनियों में भी दान की लम्बी परम्परा है। हमारे यहां जितने भी धार्मिक स्थल हैं उनके रख-रखाव के लिए तत्कालीन शासकों, राजा-महाराजाओं, नबाबों और निजी व्यक्तियों द्वारा अकूत संपत्ति दान की जाती रही है। उसके रख-रखाव के लिए भी वक्फ बोर्ड जैसी ही अनेक व्यवस्थाएं हैं, लेकिन निशाने पर वक्फ है, क्योंकि वो अल्पसंख्यक मुसलमानों का है और मुसलमानों से हमारी सरकार को चिढ है। सरकार ने 2024 के आम चुनावों में खुलकर मुसलमानों का नाम लेकर बहुसंख्यक हिन्दू मतदाताओं को आतंकित करने की कोशिश की थी। कहा था कि जनता का मंगलसूत्र खतरे में पड जाएगा।
बहरहाल मुस्लिम नेताओं का आरोप है कि मोदी सरकार वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को छीनना चाहती है। भाजपा शुरू से ही वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों के खिलाफ रही है। वह अपने हिन्दुत्व एजेण्डे के तहत वक्फ संपत्तियों और वक्फ बोर्ड को खत्म करना चाहती है। अगर इसमें कोई संशोधन किया गया तो प्रशासनिक अराजकता पैदा होगी और वक्फ बोर्ड अपनी स्वायत्तता खो देगा, जो कि धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ होगा। हमारी सूचना है कि प्रस्तावित विधेयक में वक्फ बोर्ड द्वारा संपत्तियों पर किए गए सभी दावों को अनिवार्य सत्यापन से गुजरना होगा। वक्फ बोर्ड के अधिकारों, उसकी ताकतों और उसकी कार्यप्रणाली में बडा परिवर्तन किया जाएगा। महिला सदस्य राज्यों में वक्फ बोर्ड का हिस्सा होंगी। प्रस्तावित बिल में मौजूदा कानून से जुडे कई क्लॉज हटाए जा सकते हैं। उनके मुताबिक वक्फ बोर्ड अधिनियम में 40 से अधिक संशोधन किए जा सकते हैं।
सरकार सर्वशक्तिमान होती है, वो सब कुछ कर सकती है, लेकिन इस सब कुछ के पीछे बहुत कुछ छिपा होता है। सवाल ये है कि वक्फ बोर्ड कि ऊपर सरकार की वक्र दृष्टि है क्यों? इसका सीधा सा जबाब है वक्फ के पास अकूत संपत्ति का होना। एक सूचना के मुताबिक वक्फ बोर्ड जमीन के मामले में रेलवे और कैथोलिक चर्च के बाद तीसरे नंबर पर है। आंकडों के मुताबिक वक्फ बोर्ड के पास आठ लाख एकड से ज्यादा जमीन है। साल 2009 में यह जमीन चार लाख एकड हुआ करती थी, जो कुछ सालों में बढकर दोगुनी हो गई है। इन जमीनों में ज्यादातर मस्जिद, मदरसा और कब्रगाह हैं। पिछले साल अल्पसंख्यक मंत्रालय ने लोकसभा में बताया था कि दिसंबर 2022 तक वक्फ बोर्ड के पास कुल आठ लाख 65 हजार 644 अचल संपत्तियां थीं। जाहिर है कि ये संपत्तियां मुस्लिमों द्वारा वक्फ की गई हैं, यानि ये सरकारी नहीं हैं, लेकिन सरकार को ये संप्त्तियां चाहिए।
हकीकत ये है कि वक्फ की संपतियों का दुरुपयोग ठीक उसी तरह हो रहा है जैसे हिन्दू मन्दिरों की संपत्तियों या ईसाई मिशनरियों की संपत्तियों का हो रहा है। इन सभी का नियमन जरूरी है क्योंकि अधिकांश मन्दिरों और वक्फ की संपत्तियों को असरदार लोगों ने या तो खुर्द-बुर्द कर दिया है या फिर उनके ऊपर गलत तरीके से कब्जा कर लिया है। आरोप है कि अकेले औबेसी के पास वक्फ की तीन हजार करोड की वक्फ संपत्तियां हैं। देश के अनेक राज्यों में वक्फ की संपत्तियों को लेकर अदालतों में मुकद्दमे चल रहे हैं। मुझे पता है कि कानून के होते हुए भी न वक्फ की संपत्तियां महफूज हैं और न दूसरे धर्मों की संपत्तियां। जैसे मुल्ला-मौलवियों ने वक्फ संपत्तियों को खुर्द-बुर्द कर दिया है, वैसे ही मठों की संत-महंतों ने मन्दिरों की संपत्तियों को या तो बेच खाया है या मामूली से किराये पर असरदार लोगों को दे दिया है। लेकिन सरकार को वक्फ संपत्तियों की ज्यादा फिक्र है। दूसरे मजहबों की संपत्तियों की नहीं।
दरअसल सरकार एक तीर से दो निशाने साध रही है। एक तरफ सरकार वक्फ संपत्तियों पर अपना अधिपत्य बढाना चाहती है और दूसरी और अल्पसंख्यक मुस्लिमों को सबक भी सिखाना चाहती है, क्योंकि आम चुनाव में अल्पसंख्यकों ने सरकारी पार्टी को बुरी तरह से खारिज कर दिया। यदि जेडीयू और टीडीपी भाजपा का साथ न देती तो भाजपा को आज विपक्ष में बैठना पडता। भाजपा ने पिछले दस साल में मुस्लिमों कि कल्याण कि नाम पर उनका जितना नुक्सान किया है उतना पहले किसी ने भी नहीं किया। केन्द्र में भाजपा की सरकार के रहते अयोध्या में नया राम मन्दिर बन गया, लेकिन नई मस्जिद नहीं बनी। क्योंकि सरकार को मस्जिद बनाने में कोई दिलचस्पी है ही नहीं। सरकार का काम भी नहीं है मस्जिद बनवाना। सरकार तो मुस्लिमों की है ही नहीं। मध्य प्रदेश में तो सरकार एक कदम आगे जाकर पहली बार कृष्ण जन्म अष्टमी सरकारी स्तर पर मनाने जा रही है, क्योंकि मप्र में पहली बार यदुवंशी यानि डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री बने हैं।
हम या आप सरकार को उसका काम करने से नहीं रोक सकते, ये काम विपक्ष का है। हमारा काम तो केवल आगाह करने का है। हमारा पहले भी कहना था और आज भी कहना है कि सरकार को सचमुच सबका साथ लेकर सबका विकास करना चाहिए। यदि सरकार हिन्दू-मुसलमान के फेर में पडी रही तो वो दिन दूर नहीं जब हम भी श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह नफरत की आग में झुलसते नजर आएं। इससे समय रहते बचने के उपय किए जाएं तो बहतर, अन्यथा होगा वो ही जो भाजपा और संघ ने रच कर रखा है। राम जी का इसमें कोई रोल नहीं है।