सियासी ओलम्पिक में हम सबसे आगे

– राकेश अचल


मुझे पेरिस में हो रहे ओलम्पिक खेलों में भारत की उपलब्धियों पर लिखना चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा, क्योंकि इस समय देश में संसद के भीतर और बाहर जिस तरह का सियासी ओलम्पिक चल रहा है उसे देखकर देशवासी दांतों तले उंगलियां दबाने को विवश हैं। सियासी ओलम्पिक में लाशों पर राजनीति है, गलियों पर राजनीति है, और तो और राजनीति में भी राजनीति है। फर्क एक ही है कि पेरिस ओलम्पिक में दुनिया के खिलाडी अपने-अपने देश का नाम ऊंचा करने के लिए खेल रहे हैं, जबकि सियासी ओलम्पिक में हम देश का नाम डुबोने के लिए खेल रहे हैं। दुर्भाग्य ये कि ये खेल लगातार जारी है। पूरे दस साल से जारी है।
देश की संसद में वायनाड की त्रासदी गूंजी, लेकिन वहां भी सियासत त्रासदी पर हावी रही। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने शाही अंदाज में कहा कि केरल सरकार ने बाढ की पूर्व सूचना की अनदेखी की, इस वजह से इतना बडा हादसा हुआ। सरकार ने बडी दरियादिली से कहा कि हम पीडितों के साथ चट्टान की तरह खडे हैं, लेकिन ये चट्टान केरल सरकार की इतनी मदद कर रही है, ये कोई नहीं जानता। वायनाड में मरने वालों की संख्या 250 को पार कर गई है। केरल के मुख्यमंत्री ने अमित शाह के बयान को ‘ब्लैक गेम’ कहा है। जाहिर है कि सियासत को लाशें ही अच्छी लगती हैं।
देश की राजधानी दिल्ली में अभी हाल ही में एक तलघर में पानी भरने से संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं की तैयारी कर रहे तीन युवक-युवतियों की मौत हो गई थी, कल फिर एक मां-बेटे को बाढ का पानी लील गया। वायनाड तो दिल्ली से दूर है लेकिन जब दिल्ली में ही बाढ और वर्षा की पूर्व सूचनाओं के बावजूद जान-माल महफूज नहीं है तो किसे क्या कहा जाए? देश सरकार के नहीं, राम के भरोसे चल रहा है। राम के भरोसे इसलिए चल रहा है क्योंकि सत्ता पर रामभक्त काबिज है। उनसे खुद नहीं चला जा रहा। वे बैशाखियां लगाकर चलने और देश को चलाने की कोशिश कर रहे हैं।
जब मैं सियासी ओलम्पिक की बात करता हूं तो पूरी ईमानदारी से करता हूं, क्योंकि मैं आम आदमी के मन की बात करता हूं। देश की संसद में इन दिनों जाति की सियासत चल रही है। सत्तारूढ दल के एक पूर्वमंत्री ने जब लोकसभा में विपक्ष के नेता को लक्ष्य कर कहा कि जिन लोगों को अपनी जाति का पता नहीं है, वे जातीय जनगणना की बात करते हैं। सवाल करने वाले सज्जन अनुराग ठाकुर हैं। उनके पिता हिमाचल के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, मैं अनुराग को सज्जन इसलिए कहता हूं क्योंकि उनके मुखारबिंद से सज्जनता मोतियों की तरह टपकती है। वे संसद में अपने संसदीय शब्दकोश का मुजाहिरा करने से पहले दिल्ली की सडकों पर ‘गोली मारो सालों को’ का आव्हान भी कर चुके हैं।
अनुराग यदि सज्जन न होते तो क्या मुमकिन था कि देश का प्रधानमंत्री अनुराग के ‘जाति ही पूछो’ वाले बयान को अपने एक्स खाते पर दर्ज कर देश की जनता से कहते कि बार-बार देखो, हजार बार देखो, क्योंकि देखने की चीज है अनुराग का बयान। प्रधानमंत्री जी ने हद तो तब कर दी जब उन्होंने ठाकुर के बयान के उस हिस्से को निर्भय होकर उदधृत कर दिया जिसे लोकसभा की कार्रवाई से निकाला जा चुका है। यानि ये सीधे-सीधे लोकसभा के विशेषाधिकार हनन का मामला है। कांग्रेस इसका संज्ञान भी ले रही है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि सर्वाधिकार प्राप्त प्रधानमंत्री के विरुद्ध विशेषाधिकार हनन के नोटिस का नोटिस लोकसभा के अध्यक्ष लेंगे। लोकसभा अध्यक्ष पहले ही सदन में अपने पक्षपाती रवैये के चलते अपनी मिट्टी कुटवा चुके हैं।
मुझे लगता है कि इस समय यदि पं. अटल बिहारी बाजपेयी और पं. जवाहर लाल नेहरू की आत्माएं कहीं बैठकर गुफ्तगू कर रही होंगी तो अनुराग ठाकुर के बयान पर ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक्स टिप्पणी पर भी अपना माथा पीट रही होंगी। क्योंकि दोनों ने ही भारत की ऐसी संसद की कल्पना नहीं की होगी जैसी की आज है। आज की संसद में सब कुछ है, सिवाय मर्यादा के। मर्यादा की चादर का एक कोना सत्ता पक्ष के हाथ में होता है और दूसरा कौना विपक्ष के हाथ में। विपक्ष मर्यादा का कौना कसकर पकडे भी तो सत्तापक्ष उसे ढील दे देता है। सत्ता पक्ष की और से अनुराग ने ही मर्यादा भंग नहीं की है, इसके पहले भी 17वीं लोकसभा में अनुराग की आत्मा एक बिधूडी में प्रवेश कर न जाने क्या-क्या आंय-बांय बोल गई थी। लेकिन न तब कुछ हुआ और न अब कुछ होगा। संसदीय कार्य मंत्री अब किस मुंह से अपने प्रधानमंत्री जी से सवाल करेंगे। क्योंकि सदन की विधियों का ज्ञान तो उन्हें भी शायद उतना ही है जितना की संसदीय कार्यमंत्री किरण रिज्जू की नजर में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को है।
भारत जातीय मकडजाल में आज से नहीं बल्कि त्रेता युग से फंसा है। बावजूद इसके हमारे संत-महंत लगातार ये कहते रहे कि ‘जाति न पूछो साधू की’ या ‘जाति-पंत पूछे नहीं कोय, हरि को भजे सो हरि का होय’। अनुराग ठाकुर और उनकी पार्टी ने राहुल से उनकी जाति जान-बूझकर पूछी है, क्योंकि दोनों ही राहुल को साधू नहीं मानते। भाजपा और अनुराग की नजर में राहुल साधू नहीं बल्कि शैतान हैं और उनकी शैतानियों की वजह से मोदी जी की गारंटियां नहीं चलीं। भाजपा 370 पार नहीं कर पाई और भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन 400 पार करने के बजाय 240 पर ही अटक गया।
देश की संसद में ये पहली बार हुआ है जब कि अडानी और अम्बानी के नाम को असंसदीय माना गया है। आप इन दोनों के नामों का उल्लेख सदन के भीतर नहीं कर सकते। वो तो राहुल गांधी का भला हो कि उन्होंने इन दोनों नामों का उल्लेख करने के लिए ए-1 और ए-2 का फार्मूला निकाल लिया। रही बात सदन के विशेषाधिकार हनन के मामले में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की तो वे प्रधानमंत्री जी के खिलाफ जाने की हिम्मत ही नहीं रखते। वे लोकसभा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे देंगे किन्तु मोदी जी के खिलाफ विशेषाधिकार का नोटिस मंजूर नहीं करेंगे, आखिर वे भी एक प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं और किसी भी दल के प्रति प्रतिबद्ध आदमी नियम-कानूनों को नहीं जानता। बहरहाल अब जो भी होगा देखा जाएगा। ‘को कहि तर्क बढावहि शाखा’?