बजट का हलुवा और हलुवे का बजट

– राकेश अचल


भारत अनोखा देश है। यहां सब कुछ अनोखा होता है, जो दुनिया के शायद तमाम देशों में न होता हो। भारत में सरकार बजट पेश करने से पहले एक समारोह करती है जिसे अंग्रेजी में ‘हलुवा सेरेमनी’ कहते हैं। इस हलुवा समारोह का लिखित इतिहास मुझे तो खोजने पर नहीं मिला, लेकिन जाहिर है कि इसके पीछे भी कांग्रेस ही रही होगी, क्योंकि आज का भारत तो 2014 के बाद का भारत है। आज के भारत में स्टेशनों, शहरों और कानूनों के नाम बदले गए लेकिन गनीमत है कि इस हलुवा सेरेमनी को अभी तक हाथ नहीं लगाया गया है।
भारत में हलुवा और बजट आम आदमी के लिए ही बनाया जाता है। हलुवा सबसे सस्ता और सुलभ मिष्ठान भी है। गांवों से लेकर शहरों तक लोकप्रिय है। अमीर-गरीब सभी इस हलुए को पसंद करते हैं। शायद अंग्रेज भी करते हों। हलुवे की लोकप्रियता कालांतर में इतनी बढ़ी कि इसे मुहावरे का सम्मान मिल गया। किसी भी काम में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार या गोलमाल करने को भी ‘हलुवा करना’ ही कहा जाता है। हलुवा बनाना और हलुवा करना एक खास कला है, इसके कलाकार ज्यादातर सियासत में या नौकरशाही में मिलते हैं। जहां ईमानदारी से हलुवा बनता है वो जगह केवल गुरुद्वारा है, लेकिन गुरुद्वारों में बनने वाले हलुवे को हलुवा नहीं ‘कडा-प्रसाद’ कहा जाता है। हलुवा जब प्रसाद बन जाता है तो आत्मा को सुकून देता है, लेकिन जब हलुवा बजट बनता है तो हमेशा मीठा नहीं लगता।
वैसे आपको बता दूं कि हलुआ एक प्रकार का मिष्ठान है, जिसकी उत्पत्ति फारस से हुई है और व्यापक रूप से पूरे मध्य पूर्व में फैली हुई है। हलुवा साधारणत: आटे, सूजी, गहि और शर्करा से बनता है। बाद में आप इसमें बारीक पिसे हुए बीज या बादाम भी मिला सकते हैं। आज-कल तो हर चीज का हलुवा बनने लगा है जो बजट हलुवे से सर्वथा भिन्न होता है। हलुवा अब हैसियत से बाबस्ता हो गया है। जिसकी जैसी हैसियत उसका वैसा हलुवा। मठ का अलग, मन्दिर का अलग और कर्तव्य पथ का लग किस्म का हलुवा होता है। मुंबई वालों का हलुवा तो सबसे अलग होता ही है। भाई अनंत की शादी में किस तरह का हलुवा बना हमें पता नहीं।
इस साल के बजट का हलुवा समारोह नॉर्थ ब्लॉक में संपन्न हो गया। आम बजट के हलुवे को किसने बनाया मुझे नहीं पता, किन्तु केन्द्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने सबसे पहले ये बजट हलुवा अपने मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों में तकसीम किया। इसी नॉर्थ ब्लॉक में बजट छपने वाली छपाई मशीन लगी है। ताकि बजट लीक न हो। बजट लीक हो या न हो इससे कोई फर्क नहीं पडता। फर्क इस बात से पडता है कि बजट में हलुवे की जो मिठास है वो आम आदमी तक भी पहुंच पाएगी या नहीं? देश में कांग्रेस ने दशकों तक बजट का हलुवा किया। अब एक दशक से भाजपा ये काम कर रही है। इस साल के बजट में तो भाजपा के साथ टीडीपी और जेडीयू को भी हलुवा करने का सौभाग्य मिला है।
कोई भी सरकार हो बजट में हलुवा करना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। सरकार चाहे केन्द्र की हो या राज्य की, बजट में हलुवा करती ही है। ये बात और है कि अनेक राज्यों में हलुवा सेरेमनी नहीं होती। निर्मला जी मुझसे चार महीने छोटी हैं लेकिन मुझसे ज्यादा पढ़ी लिखी है। निर्मला जी के पास हलुवा बनाने की कोई उपाधि नहीं है, किन्तु उन्होंने भाजपा सरकार के लिए सबसे ज्यादा बार बजट हलुवा तैयार किया। वे राजनीति में पिछले दरवाजे से (राज्यसभा) आई थीं, लेकिन वे पिछले छह-सात मर्तबा बजट हलुवा बनाने का सौभाग्य हांसिल कर चुकी हैं। वे भाजपा की सबसे ज्यादा सौभाग्यशाली वित्त मंत्री हैं। उनके हलुवा बनाने पर किसी को संदेह नहीं है, सिवाय उनके अपने पति को। भाजपा सरकार ने बीच में उन्हें हलुवा बनाने की जिम्मेदारी से मुक्त कर देश की रक्षा का और बाद में कारपोरेट का काम भी सौंपा, लेकिन जब दूसरे वित्त मंत्री ढंग से बजट हलुवा नहीं बना पाए तो उन्हें वापस वित्त मंत्री बनाकर बजट हलुवा बनाने की जिम्मेदारी दे दी गई।
देश में किसी भी दल की सरकार हो लेकिन आम जनता को उसके बजट हलुवे से तमाम उम्मीदें बनी रहती हैं। इस बार के बजट से देश के सभी वर्गों के लोगों को काफी उम्मीदें हैं। आगामी बजट को लेकर आम लोगों को उम्मीद है कि इस बार उन्हें सरकार की तरफ से थोडी राहत दी जाएगी। चूंकि यह बजट आम चुनावों के बाद का पहला बजट है, ऐसे में सरकार के लिए भी यह बजट काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। आम चुनाव में सरकार ले-देकर बनी है। इसलिए सरकार पर बजट को मीठा बनाने का दबाब है। सरकार के सामने कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी है। इस कारण सरकार द्वारा अपने वोट बैंक को भुनाने के लिए आम बजट में लोगों को खुश को लेकर ऐलान किए जाने की उम्मीद की जा रही है।
नौकरीपेशा यानी सैलरी क्लास से लेकर, महिलाएं, किसान, टैक्स पेयर्स और युवा वर्ग तक के लोग इस बार के बजट में सरकार से राहत की उम्मीद कर रहे है। उन्हें उम्मीद है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब बजट 2024-25 पेश करेंगी तो उनके लिए कोई खास ऐलान किया जा सकता है। बजट 23 जुलाई 2024 को पेश किया जाएगा। तब तक सभी को बजट हलुवे की महक से ही काम चलना पडेगा। बजट हलुवे का स्वाद कैसा होगा ये 23 जुलाई को ही पता चलेगा। भाजपा सरकार का नया बजट स्वाद में चाहे जैसा हो किन्तु उसका रंग तो भगवा ही रहने वाला है। देश का भगवाकरण हो रहा है तो बजट और उसका हलुवा इस रंग से कैसे बच सकता है।
इस समय देश को ऐसे हलुवे की जरूरत है जो किसानोन्मुखी हो। किसान हलुवा पेश होने की फिक्र किए बिना अपनी पुरानी मांगों को लेकर छह महीने का राशन-पानी लेकर दिल्ली आने वाले हैं। इस बार सरकार उन्हें दिल्ली आने से रोक भी नहीं सकती, क्योंकि माननीय अदालत ने किसानों के दिल्ली जाने के अधिकार को संवैधानिक बता दिया है। अब देखना ये है कि आने वाले दिनों में केन्द्र द्वारा बनाया गया हलुवा फैल तो नहीं जाएगा? भगवान करे कि ऐसा न हो।