जन्म और मृत्यु दोनों ही मंगल हैं : शंकराचार्य जी

ग्राम परा स्थित अमन आश्रम में हुआ श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ

भिण्ड, 07 अक्टूबर। अटेर विकास खण्ड अंतर्गत परा ग्राम स्थित अमन आश्रम परिसर में गुुरुवार से प्रारंभ श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञानयज्ञ के प्रथम दिन में अनंत श्री विभूषित काशीधर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज ने कहा कि मृत्यु अमंगल नहीं है, जन्म और मृत्यु दोनों ही मंगल हैं। क्योंकि यह आत्मा मरती नहीं है शरीर नष्ट होता है। जैसे पुराने और जीर्ण वस्त्रों का परित्याग कर नवीन वस्त्र धारण करते हैं वैसे ही आत्मा पुराने और जीर्ण शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करती है। जब मनुष्य को प्रबल वैराग्य हो जाता है तो कामनाएं उसे अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती।
शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज ने कहा कि श्राद्ध पक्ष में लोगों को अपने पितरों को संतुष्ट करना चाहिए। जिस प्रकार हमारे पूर्वज इस धरा को छोड़कर चले गए वैसे ही हमको भी एक न एक दिन वहां जाना है। सभी की मन:स्थिति रहती है कि वो जीवित रहे तो हमें अपने कर्मों को अच्छा करना होगा। हम रहे और दूसरों को भी रहने दे किसी को अनावश्यक कष्ट न पहुंचाये। पितरों का तर्पण और उनके निमित्त श्राद्ध करना हम सभी का परम कर्तव्य है। आज के मनुष्य के अंदर श्रद्धा ही नहीं रह गई तो वो श्राद्ध कैसे करेंगे। लोग अनावश्यक कुतर्क करते हैं कि अगर श्राद्ध में ब्राम्हणों को भोज करेंगे तो तो पितर लोक में बैठें हमारे पितरों को भोजन कैसे प्राप्त होगा।
महाराजश्री ने कहा कि जैसे हम कहीं से भी किसी स्थान से मोबाइल आदि आधुनिक तकनीकों से वार्तालाप करते हैं वैसे ही अगर हम श्रद्धा पूर्वक पितरों को तर्पण और श्राद्ध करेंगे तो पितरों को अवश्य ही प्राप्त होगा। सामथ्र्यवान लोग ही तपस्वी होते हैं जगत में जो तपस्या करने वाले हैं उन्हीं को यश की प्राप्ति होती है। जो लोग जीवन में तपस्या के लिए कष्ट नहीं चाहता वो यश की प्राप्ति नहीं कर पाता तपस्या के बल पर कई लोगों ने अपने अभीष्ट की पूर्ति की है।
उन्होंने कहा कि आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करते हैं जो शक्ति के उपासक होते हैं। दैवीय विचारों की प्रतिभा महिसासुर जैसे असुर के भय से भयभीत हो गई थी सभी देवता पाहि माम् करने लग गए और ब्रह्मा, विष्णु, महेश से प्रार्थना की त्रिदेवों ने अपनी शक्ति के रूप में आदिशक्ति भगवती को प्रगट किया। संसार में आज भी दैवीय और आसुरी विचारधारा के लोग है और असुरी विचारधारा के लोग दैवीय विचारधारा के लोगों को परेशान कर रहे हैं। संपूर्ण विश्व के कल्याण की भावना जिसमें हो वही धर्म है उसी सनातन धर्म की रक्षा के लिए देवताओं ने शक्ति की उपासना की। कार्यक्रम से पूर्व पादुका पूजन संपन्न हुआ जिसमें स्थानीय गणमान्यों ने पूजन कर महाराज जी का आशीर्वाद प्राप्त किया।