राजनीति से राम की मुक्ति असंभव

– राकेश अचल


भारत की राजनीति को आप बेपटरी होने से बचना नामुमकिन लगने लगा है। इसके लिए राहुल गांधी लाख यात्राएं कर लें लेकिन राम नाम की दुकान चलने वालों से उनके लिए पार पाना कठिन होता जा रहा है। भारत में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को भूल भी जाएं, लेकिन भाजपा राम को भूलने नहीं दे रही। भाजपा की राजनीति की धुरी में न विकास है, न विज्ञान, केवल राम हैं। भाजपा जिस राम का नाम लेकर रथ पर चार दशक पहले चढकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंची थी, अब वहां से उतरने का नाम ही नहीं ले रही। अगला आम चुनाव भी भाजपा राम-राम जपकर ही लडने और जीतने वाली है।
इस देश में राम की अनेक छवियां हैं। एक राजा राम हैं, तो एक वनवासी राम हैं, अयोध्या में राम लला हैं। भाजपा ने इन तीनों रामों का इस्तेमाल करने के लिए धर्म की मर्यादा की हर लक्ष्मण रेखा को लांघा है, लेकिन भाजपा ऐसा करते वक्त न डरी, न सहमी और न लजाई। भाजपा का लज्जा से वैसे भी कितना दूर का और कितना पास का रिश्ता है, इसकी विवेचना पाठक खुद कर सकते हैं। मैं तो केवल भाजपा के राम की बात कर रहा हूं और देख रहा हूं कि कैसे एक सरकार 80 करोड भूखों की मौजूदगी में एक नकली रामराज स्थापित करने के नाम पर जनता से छल करती जा रही है।
देश में राम राज जैसा राज कायम हो, इसमें किसी को आपत्ति नहीं हो सकती, लेकिन राम के नाम पर सियासत में झूठ, छल और कपट का कारोबार चले, ये कम से कम जाग्रत राम भक्त तो पसंद नहीं कर सकते, समर्थन तो दूर की बात है। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि उलटा ही हो रहा है। जैसे-जैसे राम के नाम पर छल बढ रहा है, छलिया राजनीति का समर्थन भी बढ रहा है। इसे देखकर लगता है कि भारत ने सचमुच बीते 75 साल में न राम के लिए कुछ किया और न अवाम के लिए। अन्यथा आज दोनों सियासत के चक्रव्यूह में फंसे न होते। मुझे आज तक ये समझ में नहीं आ रहा है कि भाजपा रामजी के लिए गठित राजनीतिक दल है या रामजी भाजपा के लिए कलियुग में भी मौजूद हैं, ताकि भाजपा सत्ता में अनंत काल तक बनी रहे।
पहले देश में राम के नाम पर धंधक-धोरी सक्रिय थे। देवानंद ने बहुत कोशिश की राम का नाम बदनाम न हो। पर राम नाम का दुरुपयोग नहीं रुकना था सो नहीं रुका और आगे भी शायद ही इसे रोका जा सके। क्योंकि अब शायद रामजी भी ये चाहते हैं कि कलियुग में भारत में ऐसा राम राज हो जिसमें 80 करोड लोगों के पास दो जून की रोटी का इंतजाम न हो। शायद रामजी ही चाहते हैं कि राम राज में बडे से बडे उद्योगपति जितना चाहें बैंकों का पैसा लेकर विदेश भाग जाएं। शायद यह रामजी की ही मर्जी है कि जिसमें संसद से 150 सांसदों का निलंबन हो और फिर उनकी बहाली का मुद्दा अधर में छोड दिया जाए और चुनावी तैयारियों में जुटा जाए।
कभी-कभी मुझे लगता है कि राजा राम और भारत की मौजूदा सरकार के बीच कुछ न कुछ एमओयू जरूर हुआ है, जिसके तहत ही अयोध्या का कायकल्प हो रहा है। जैसी अयोध्या आज है वैसी तो त्रेता में भी न थी। अयोध्या में केन्द्र और राज्य की सरकारें एक पांव पर खडी होकर रामलला की इन प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करने का प्रयास कर रहीं हैं, दोनों सरकारों को डर है कि ऐसा न करने पर रामजी इन सरकारों को कहीं बर्खास्त न कर दें। प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की राम भक्ति देखकर मै उनसे ईष्र्या करने लगा हूं। भाजपा और भाजपा के मौजूदा हाईकमान ने रामजी के नाम पर जितना वसूल किया जाना था उतना वसूल लिया। अब वे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कर आम चुनाव में 400 पार करने की गुहार लगा रहे हैं। जाहिर है कि 300 पार करने से भी भाजपा अभी उस लक्ष्य पर नहीं पहुंच पाई है जहां वो अपना मकसद पूरा कर सके।
भाजपा की रामभक्ति और रामनामी सियासत ने देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को धूमिल कर दिया है। अब भारत न गुटनिरपेक्ष देश है और न उसके पास कोई पंचशील का सिद्धांत ही है। उसके पास देश के विकास की कोई परियोजना भी नहीं है, लेकिन भाजपा के पास सब कुछ है। भाजपा के पास देश की सत्ता पर तीसरी बार काबिज होने के लिए रामनामी योजना है। भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस के पास शायद कुछ भी नहीं है। कांग्रेस का गांधीवाद और धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत अब दम तोडता नजर आ रहा है। भाजपा ने राम के लिए रथारूढ होने वाले लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसों तक को छोड दिया है, जो बडे और असली रामभक्त हैं। यदि वे अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के वक्त रहे तो श्रेय बंट सकता है।
भाजपा राम के नाम पर जितने काम कर रही है उतना काम यदि कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर किया होता तो आज देश की राजनीति बेपटरी न हुई होती। देश में राम राज की कल्पना किसी गोलवलकर, किसी हेगडे की नहीं, बल्कि मोहनदास करमचंद गांधी यानि महात्मा गांधी की थी, लेकिन गांधी गलती कर गए, उन्होंने राम भक्त होने का पेटेंट नहीं लिया और राम नाम पर अपनी जान देकर चलते बने। उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गले में भगवा रंग का दुपट्टा डालने की जरूरत नहीं समझी। गांधी की गलती का खमियाजा आज की कांग्रेस को भुगतना पड रहा है। अयोध्या में राम मन्दिर बनने से रामजी खुश हैं, सभी खुश हैं। वे 80 करोड लोग भी जो दो वक्त के पांच किलो अन्न के लिए सरकार के मोहताज हैं।
भारत में लोकतंत्र की मजबूती के लिए एक राम मन्दिर से काम नहीं चलने वाला। कम से कम हर राज्य में एम्स की तर्ज पर एक-एक राम मन्दिर तो बनना ही चाहिए। एम्स हो या न हो, लेकिन यदि राम मन्दिर होगा तो आदमी के प्राण बचाए जा सकते हैं। आदमी राम का नाम लेकर समस्त पाप पुंजों से मुक्त हो सकता है। उसे गंगा स्नान करने की भी जरूरत नहीं पडने वाली। जनता को रामनामी चादरें और मालाएं बांटकर उन्हें दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति दिलाई जा सकती है। राम भक्तों का न जेएन-1 कोविड कुछ बिगाड सकता है और न कोई दूसरा वैरिएंट। मैंने भी तय कर लिया है कि पहली फुर्सत मिलते ही मैं सपरिवार अयोध्या जाकर रामलाला के दर्शन करूंगा, बाद में राहुल गांधी की न्याय यात्रा के बारे में सोचूंगा।