भाजपा के पक्ष में जनादेश के निहितार्थ

– राकेश अचल


लोकतंत्र का सेमीफाइनल हो गया है, चार राज्यों की जनता ने अंतत: अपने हाथों में धर्म ध्वजाएं उठा लीं। धर्मनिरपेक्षता एक बार फिर पद दलित हो गई है और इससे जाहिर है कि नए साल में भी धर्म ध्वजाएं ही फहराएंगी। ऐसे ही मंजर के लिए कामिल अजीज कहते हैं कि ‘दामन पै कोई छींट न खंजर पाई कोई दाग, तुम कत्ल करे हो की करामात करे हो।’
भाजपा की जीत अप्रत्याशित है तो है। भाजपा को और तीनों राज्यों की जनता को बधाई देना पडेगी कि उसने भाजपा को एक बार फिर सत्ता की चाबी सौंपी है। जनादेश एकतरफा है, स्पष्ट है। जनादेश ऐसे ही आना चाहिए, फिर वे चाहे कांग्रेस के पक्ष में हों या भाजपा के पक्ष में। इन नतीजों के लिए भाजपा के उपेक्षित और अपेक्षत नेताओं की मेहनत भी है और केन्द्रीय नेतृत्व की रणनीति भी। भाजपा के मध्य प्रदेश में जमीन पर आने के आसार थे, लेकिन भाजपा आसमान पर पहुंच गई। इन नतीजों के लिए न मशीनें जिम्मेदार हैं और न नौकरशाही। इसके लिए जिम्मेदार है समय। जिम्मेदार है अनुमान।
मुझे लगता है कि ये चुनाव भाजपा की रणनीति की जीत है। भाजपा के लिए यदि दक्षिण ने दरवाजा बंद किया है तो हिन्दी अत्ती ने अपने दरवाजे और खिडकियां तक खोल दीं, जनता यानि मतदाता को रेवडियां भी पसंद नहीं आईं और मुहब्बत की दुकनें भी। जनता ने जो चुना वो उसकी पसंद है और उस पर कोई प्रश्न खडा नहीं किया जा सकता, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि देश ने एक ऐसा रास्ता चुन लिया है जो सुरंग जैसा है। जिसमें प्रवेश करना आसान है, लेकिन निकलना नहीं। अब जनता राम नाम की माला जपे, विकास-फिकास की बात न करे। एक्जिट पोल करने वाले भी अब कोई दूसरा धंधा करने लगें तो बेहतर है। हम जैसे लोग तो अब बदलने वाले नहीं। आखरी वक्त में हम क्या खाक मुसलमान होंगे?
तीन राज्यों के चुनाव नतीजों ने ‘हार्स ट्रेडिंग’ का धंधा भी ठप्प कर दिया है। जनता ने ‘पकड’ जैसे अपराध को भी अनदेखा कर दिया है। जनता ने केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के नेताओं के वीडियो पर भी भरोसा नहीं किया। यानि जनता फालतू की बातों पर ध्यान नहीं देती। जनता ध्यान देती है धर्म ध्वजाओं पर। जनता ने केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की कथित गद्दारी को भी माफ कर दिया है, बल्कि जनता ने सिंधिया को पुरस्कृत कर दिया है। मुझे लगता है कि भाजपा जरा और कस लगाती तो 2003 के आंकडों को हासिल कर सकती है। अब राजनीति लाडली बहनों और लाडली बेटियों के सहारे चलेगी। लाडली बहनों और बेटियों के सहारे सरकार चलाना ज्यादा सस्ता काम है। विकास कार्यों में ज्यादा पैसा लगता है, लेकिन बहनों-बेटियों को नजराना देने में कम पैसा लगता है।
लोकतंत्र के सेमीफाइनल के नतीजों ने क्रिकेट के विश्व कप को हारने के दर्द को कम कर दिया है। ऊपर वाला जख्म देता है तो दवा भी करता है और उसने भाजपा के जख्मों को भरा भी। भाजपा अब नई ऊर्जा के साथ 22 जनवरी को अयोध्या में राम मन्दिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का काम कर सकती है। नए लोक बना सकती है। दीप प्रज्ज्वलन के नए कीर्तिमान बना सकती है, कोई उसे रोकने वाला नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुशनसीब हैं कि उनके पास अब एक छोड तीन-तीन नए एटीएम आ गए हैं (राज्य सरकारों को मोदी जी एटीएम मानते हैं)। जिस दल की जितनी सरकारें होती हैं, उस दल के पास उतने एटीएम होते हैं। कांग्रेस के पास भी फिलहाल काम चलने लायक एटीएम हैं। कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल के एटीएम उसे परेशान नहीं होने देंगे।
चार राज्यों के नतीजों ने जाहिर कर दिया है कि अब देश में बुलडोजर संहिता को और मुस्तैदी से लागू किया जा सकता है। यानि सीधी कार्रवाई की जा सकती है। मुझे भी लगता है कि मोदी जी को पनौती मानने वालों को ये भी मान लेना चाहिए कि मोदी हैं तो मुश्किल कम, मुमकिन ज्यादा है। मोदी जी मुश्किल को मुमकिन करने में सिद्धहस्त हो चुके हैं। अब प्रमाणित हो गया है कि जादूगर अशोक गहलोत नहीं, बल्कि नरेन्द्र मोदी हैं। उनका विरोध करना देश द्रोह करने जैसा है। विपक्ष को अब मोदी जी की तरह जी भर गालियां खाकर अपना स्वास्थ्य सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इन नतीजों ने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को भी एक सबक सिखाया है कि वे दारू का विरोध न करें। चौहान का विरोध करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला।
मेरी छग के निवर्तमन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के निवर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रति सहानुभूति हो रही है। मैं शिवराज सिंह चौहान की ही तरह इन दोनों का प्रशंसक हूं। चौहान अशोक गहलोत से भी बडे जादूगर निकले। उन्होंने बिना ढोल-धमाके के तस्वीर बदल दी। मेरी सहानुभूति चौहान के प्रति भी है, क्योंकि मप्र में जीत का श्रेय चौहान को मिलने वाला नहीं है। श्रेय तो मोदी जी के ही हिस्से में जाएगा और जाना भी चाहिए। मोदी जी ने हाडतोड मेहनत की, इन विधानसभा चुनावों में मेरी सहानुभूति तेलंगाना के निवर्तमान मुख्यमंत्री केसीआर के प्रति है, क्योंकि जनता ने उन्हें वीआरएस दे दिया है। वीआरएस भी एक अच्छी योजना है, इसका लाभ लिया जाना चाहिए।
मैंने तो सुबह ही कह दिया था कि जो जीता वो ही सिकंदर कहा जाएगा। भाजपा इस समय सिकंदर है। अब भाजपा को 2024 के आम चुनाव में कम मेहनत करना पडेगी, लेकिन कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के सहयोगियों का काम बढ गया है। विपक्ष और कांग्रेस को इन चुनावों से हताश नहीं होना चाहिए। हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत वाला काम होना चाहिए। हार-जीत चलती रहती है। उम्मीद की जाना चाहिए कि चारों राज्यों में नई सरकारें और नए मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्य की जनता का और बेहतर कल्याण करेंगें, जीत को विनम्रता से स्वीकार करना ही दरियादिली की निशानी है।