डेयरी उद्योग में महिला सहकारिता का बढता प्रभाव

– डॉ. दीपांका


सुदृढ सामुदायिक व्यवस्था विकास की रूपरेखा बनती है। विकास की इसी व्यवस्था को देख कर लोग सामुदायिकता के तहत काम कर तेजी से आगे की ओर बढ रहे हैं। सहकारिता की यह भावना ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी उद्योग में काफी तेजी से बढ रही है। भारत में डेयरी सहकारिता दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उप क्षेत्र है। दुग्ध उत्पादन क्षेत्र में बढती सहभागिता के कारण ही आज यह कृषि और संबद्ध गतिविधियों से उत्पादन के मूल्य का करीब 17 प्रतिशत है। देश में दुग्ध उत्पादन की मौजूदा स्थिति की बात करें तो आज करीब सात करोड ऐसे ग्रामीण किसान परिवार डेयरी से जुडे हुए हैं, जिनके पास कुल गायों का 80 प्रतिशत महिलाओं का हिस्सा डेयरी व्यवसाय में कार्य कर रहा है। इनमें से अधिकांश महिलाएं सहकारिता को अपनाकर दुग्ध उत्पादन कर देश के आर्थिक विकास में प्रभावी भूमिका निभा रही हैं।
भारतीय महिलाओं में बचत की प्रवृत्ति पाई जाती है। अक्सर देखा जाता है कि महिलाएं कुछ न कुछ करके घर को मजबूत करने में लगी रहती हैं। गांवों में आय के बेहतर रास्ते न होने के कारण महिलाएं दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में लगी हुई हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और डीआरडब्ल्यू की ओर से नौ राज्यों में किए गए एक शोध से पता चलता है कि पशु पालन में महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत है, इसी रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश, विहार, छत्तीसगढ में पशु पालन के क्षेत्र में 70 प्रतिशत महिलाएं लगी हुई हैं। पशु पालन कर दुग्ध उत्पादन में इन महिलााओं की सक्रिय भागीदारी देखी जा रही है। सहभागिता को अपनाकर महिलाएं न केवल सशक्त हो रही हैं, वल्कि देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत कर रही हैं।