देश के ‘बप्पा’ आप नहीं गणेश जी हैं

@ राकेश अचल

गणपति जी पधार रहे हैं। महाराष्ट्र वालों ने गणपति यानि गणेश जी को ‘बप्पा’ क्या कहा, अब वे पूरे देश में और दुनिया में जहां-जहां भारतीय रहते हैं वहां-वहां ‘बप्पा’ के नाम से ही जाने जाते हैं। दरअसल हमारे यहां असल नामों से ज्यादा उपनाम (निक नेम) ज्यादा जल्दी ग्राह्य होते हैं। जैसे राहुल गांधी को भाजपा ने ‘पप्पू’ कहा तो वे पूरे देश में इसी नाम से जाने-पहचाने लगे। अपने मोदी जी के साथ ‘फेंकू’ शब्द ऐसा चस्पा हुआ जो लाख कोशिशों के बावजूद हट नहीं पा रहा।
गणेश जी हमारे भारतीय आस्थाओं का एक ऐसा प्रतीक हैं जो चाहे मिट्टी के बनाए जाएं, चाहे प्लास्टर ऑफ पेरिस के या फिर गोबर के, रहते गणेश ही हैं। उनके नाम का स्मरण करते ही जो तस्वीर हमारे जेहन में उभरती है वो स्थाई, एकरूप वाली होती है। यानि लम्बोदर, गज-वदन मनोहर वाली। इस तस्वीर को कभी कोई मिटा नहीं पाया, अर्थात ये तस्वीर अविनाशी है। इसे किसी मुगल से, किसी अंग्रेज से या किसी उदयनिधि से कोई खतरा नहीं है।
गणेश जी हमारी संस्कृति के ऐसे नायक हैं जो जन-जन के प्रिय हैं। उनकी काया में गज और मनुष्य दोनों का समावेश है। उनका ठेका कोई नहीं ले सकता। हालांकि देश में पहली बार विघ्नहर्ता गणेश के समारोह में सियासत ने भांजी मारने की कोशिश की है। देश की संसद का विशेष सत्र गणेश चतुर्थी के दिन ही आहूत किया गया है, तमाम विरोध के बावजूद। लेकिन मुझे नहीं लगता की गणेश जी ने इसका बुरा माना होगा। क्योंकि वे जानते हैं कि उनके समारोह में विघ्न डालने वाले देश के असली बप्पा नहीं है। असली बप्पा तो वे खुद हैं।
हमारी संस्मृति में श्री गणेश ऐसे अकेले नायक हैं जो लोकनायक भी हैं। उनकी अपनी विरासत है, गणेश जी को लेकर अनेक रोचक कथाएं और किंवदंतियां उनके साथ जुड़ी हैं। वे सियासत में जिस तरह हमारे तमाम भाग्य विधाता लोकप्रिय हैं उसी तरह जनमानस में गणेश जी की लोकप्रियता किसी भी इंडेक्स में सबसे ऊपर है। उनके एक नहीं पूरे 108 नाम हैं, जो उनके माता-पिता ने नहीं बल्कि उनके भक्तों ने रखे हैं। विसंगतियों से भरपूर गणेश जी का एक दांत टूटा है लेकिन वे कभी किसी डेंटिस्ट के पास नहीं ले जाए गए। उनके अभिभावक चाहते तो उनका टूटा दांत भी बदला जा सकता था। क्योंकि उनकी इच्छा से गणेश जी का सिर बदला गया, किन्तु वे जैसे थे, वैसे ही मनोहर थे, थे क्या हैं। उनका पेट बड़ा है लेकिन उन्होंने कभी डायटिंग पर ध्यान नहीं दिया। वे मोदक प्रिय हैं। लड़ाकू भी हैं और विद्वान भी। आशुलेखक भी हैं और बाल सुलभ चंचलताओं से भी भरे हुए हैं।
भगवान गणेश जी के बारे में दुनिया सब जानती है। कम से भारतीय तो जानते ही हैं। गणेश जी के बारे में बताने के लिए मेरे पास भी कुछ नया नहीं है। जो कुछ है, सब पुराना है। नया है तो केवल प्रार्थना। वो भी देश में लोकतंत्र को बचाने की प्रार्थना। हम भारतीय अगर कुछ कर सकते हैं तो वो है प्रार्थना। हमारी प्रार्थनाएं कभी सुनी भी जाती हैं और कभी नहीं भी सुनी जाती। ये गणेश जी के मूड पर निर्भर करता है कि जनता की प्रार्थना को सुनें या न सुनें। गणेश जी आदि विश्वगुरु हैं। और जो विश्वगुरु होता है वो कुछ भी कर सकता है। विश्व गुरुओं की हरेक हरकत काबिले बर्दाश्त मानी जाती है।
मैं उन लोगों में से हूं जो अक्सर मंदिर नहीं जाता। मंदिरों की भव्यता और वहां के पंडा-पुजारी तंत्र से मुझे भय लगता है, लेकिन आप यकीन कीजिए कि मैं पहली बार पांच घंटे कतार में लगकर लाल बाग़ के राजा के दर्शन करने गया था। मैंने देखा की आम जनमानस में श्री गणेश के प्रति अपार श्रृद्धा है। और शायद गणेश जी की इसी लोकप्रियता का आकलन कर बाल गंगाधर तिलक ने उन्हें भारतीय जन जागरण के लिए निमित्त बनाया था। महाराष्ट्र श्रृद्धा भक्ति के मामले में भी उतना ही समर्पित है जितना की दूसरे मामलों में है। दूसरे मामले कहें तो जैसे भ्रष्टाचार, जैसे शिष्टाचार या दुर्व्यवहार। अंतुले भी यही के थे और अजित पंवार भी यहीं के हैं।
बहरहाल बात गणेश जी की हो रही है। मेरे घर भी वे हर साल अतिथि बनकर आते हैं। वे आते हैं तो उनके पीछे-पीछे सब कुछ आता है, और जो नहीं आना चाहता वो भाग जाता है। जैसे हमारे फन्ने मियां हर काम की शुरुआत के लिए विस्मिल्लाह करना कहते हैं, वैसे ही हम लोग किसी भी काम को आरंभ करने के लिए ‘श्रीगणेश’ करना कहते हैं। संसद के विशेष सत्र का श्रीगणेश भी इसी परम्परा के अनुसार हो रहा है। ये नया संसद भवन हमें गुलामी के प्रतीक पुराने संसद भवन से मुक्त करने जा रहा है। अब हम पुराने संसद भवन की ओर पलट कर भी नहीं देखेंगे। हम तो अब पुराने भारत यानि ‘इंडिया’ की तरफ भी पलट कर नहीं देखने का इंतजाम इसी नए संसद भवन में करने वाले हैं। हमने पहले भी पुराने नोटों को नए नोटों में बदला ही था भाई!
हमारे ज्योतिषाचार्य बता रहे हैं कि करीब 300 साल बाद एक एक ऐसा योग बना है कि मिथुन, मकर और मेष राशि के जातकों के लिए शुभ फल की प्राप्ति होगी। भाग्योदय हो सकता है। लंबे समय से अटका और फंसा हुआ धन मिल सकता है। अब अपनी राशि तो तुला है, इसलिए अपने को तो कुछ मिलने वाला है नहीं, लेकिन जिन राशियों वालों को लाभ मिलना है, उन्हें मेरी शुभकामनाएं हैं।
हमने बचपन से गणेश जी की जो कहानी सुनी है उसके अनुसार गणेश को जन्म न देते हुए माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की। उस समय उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार में गणेश की रचना के बाद माता ने उनको घर की पहरेदारी करने का आदेश दिया। माता ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के लिए गणेश किसी को भी घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान शंकर आए और बोले “पुत्र यह मेरा घर है मुझे प्रवेश करने दो।” गणेश के रोकने पर प्रभु ने गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता पार्वती व्याकुल हो उठीं। तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ और उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सिर लगा दिया। उनको प्रथम पूज्य का वरदान मिला, इसीलिए सर्वप्रथम गणेश की पूजा होती है।
आज के विश्व गुरु और हमारे विश्व गुरु गणेश जी में जमीन-आसमान का अन्तर है। हमारे आज के विश्वगुरु रणछोड़दास हैं, लेकिन कहते हैं कि गणेश जी ने दो विवाह किए। सियासत के गणेश अक्सर शादी-विवाह से भागते हैं। कर भी लें तो निभाते नहीं हैं। राहुल गांधी ने तो विवाह किया ही नहीं। शायद वे मोदी जी के वंशवाद के आरोप से डर गए हैं। उन्हें देशहित में शादी कर लेना चाहिए। वे यदि शादी कर लें तो भाजपा वालों द्वारा उनकी विदेश यात्राओं को लेकर जो हल्ला किया जाता है वो शांत हो सकता है।
दरअसल मैं ठहरा गोबर-गणेश, इसलिए मुझसे अक्सर ये गलती हो जाती है कि मैं सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ खड़ा हो जाता हूं। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए, किन्तु श्रीगणेश जी मुझसे ऐसा करवा लेते हैं। गणेश जी कहते हैं कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए किसी की गोदी में बैठने से बेहतर है कि हर समय सत्ता-प्रतिष्ठान के खिलाफ खड़े रहो। फिर चाहे सत्ता किसी भी दल की हो। गणेश जी की बात करें तो उनकी खासियत है कि उन्होंने किसी भी दल को अपने नाम पर सियासत करने की इजाजत नहीं दी। उन्होंने किसी भी दल या सत्ता से अपने लिए मंदिर बनाने के लिए चन्दा इकट्ठा करने को नहीं कहा। वे दगडू सेठ के बनाए मंदिर में आसीन हो जाते हैं और लालबाग के मजूरों के बनाए पंडाल में भी। गणेश जी पक्के समाजवादी हैं। उनकी जन्मभूमि को लेकर कहीं कोई झगड़ा नहीं है।
मेरे सभी देशवासियों पर (इन्हीं में मेरे पाठक, मेरे प्रशंसक, मेरे मित्र-शत्रु, सहयोगी और मेरे लेखों के लिए मुझे प्रतिदिन एक रुपया देने वाले और न देने वाले शुभचिंतक भी शामिल हैं) गणेश जी सदा अपनी कृपा बनाए रखें यही कामना है, शुभकामना है। आप सभी को ढेरों बधाइयां। हां ध्यान रखिये कि गणेशजी को सिन्दूर और दूब चढ़ाने से विशेष फल मिलता है। इसके अतिरिक्त उन्हें गुड़ के मोदक और बूंदी के लड्डू, शामी वृक्ष के पत्ते तथा सुपारी भी प्रिय है। गणेश जी को लाल धोती तथा हरा वस्त्र चढ़ाने का भी विधान है।
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