भारत के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर विशेष

– अशोक सोनी निडर

राष्ट्रवादी क्रांतिकारी कवि श्रीकृष्ण सरल की लेखनी से साभार-

तुम आजाद थे आजाद हो आजाद रहोगे, भारत की जवानियों में तुम खून बनकर बहोगे।
मौत से आंखें मिलाकर वह बात करता था, अंगदी व्यक्तित्व पर जमाना नाज करता था।।
असहयोग आंदोलन का वो प्रणेता था,भारत की स्वाधीनता का अद्भुत चितेरा था।
बापू से था प्रभावित पर रास्ता अलग था, खौलता था खून अहिंसा से वो बिलग था।।
बचपन के 15 कोड़े जो उसको पड़े थे, आज उसके खून में वो शौर्य बनकर खड़े थे।
चंद्रशेखर नाम सूरज का प्रखर उत्ताप हूं मैं, फूटते ज्वालामुखी सा क्रांति का उद्घोष हूं मैं।।
विवश अधरों पर सुलगता गीत हूं विद्रोह का, नाश के मन पर नशे जैसा चढ़ा उन्माद हूं मैं।
मैं गुलामी का कफन उजला सपन स्वाधीनता का, नाम से आजाद हर संकल्प से फौलाद हूं मैं।।
सिसकियों में अब किसी अन्याय को पलने न दूंगा, जुल्म के सिक्के किसी के में यहां चलने न दूंगा।
खून के दीपक जलाकर अब दिवाली ही मनेगी, इस धरा पर अब दिलों की होलियां जलने न दूंगा।।
राजसत्ता में हुए मदहोश दीवानो लुटेरो, मैं तुम्हारे जुल्म को ललकारता हूं।
मैं तुम्हारे दंभ को पाखण्ड को देता चुनौती, मैं तुम्हारी जात को औकात को ललकारता हूं।।
मैं जमाने को जगाने आज यह आवाज देता, इंकलावी आग में अन्याय की होली जलाएं।
तुम नहीं कातर स्वरों में न्याय की अब भीख मांगो, गर्जना के घोष में विद्रोह के अब गीत गाओ।।
आग भूखे पेट की अधिकार देती है सभी को, चूसते जो खून उनकी वोटियां हम नौच खाएं।
जिन भुजाओं में कसक कुछ कर दिखाने की ठसक है, वे न भूखे पेट दिल की आग ही अपनी दिखाएं।।
और मरना ही हमें जब तड़प कर घुटकर मरें क्यों, छातियों में गोलियां खाकर शहादत से मरें हम।
मेमनों की भांति मिमिया कर नहीं गर्दन कटाएं, स्वाभिमानी शीश ऊंचा कर बगावत से मरें हम।।
इसलिए में देश के हर आदमी से कह रहा हूं, आदमियत का है तकाजा बनकर वतन के सिपाही।
हड्डियों में वह शक्ति पैदा करें तलवार मुरझाए, तोप का मुंह बंदकर हम जुल्म पर ढाए तबाही।।

प्रेषक- राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय प्रवक्त एवं मप्र के प्रदेश सचिव