संस्कारहीन जीवन बिन नाव की पतवार की तरह है : रामभूषण दास

कचनावकलां गांव में चल रही है श्रीमद् भागवत कथा

भिण्ड, 26 अप्रैल। गोरमी क्षेत्र के ग्राम कचनावकलां में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन श्रीश्री 1008 महामण्डलेश्वर श्री रामभूषण दास जी महाराज ने कहा कि हम कितने भी शिक्षा हासिल कर लें, जब तक हमारे अंदर संस्कार नहीं हैं, तो हमारी पूरी की पूरी शिक्षा बेकार है। हमारे जो आदर्श ग्रंथ हैं श्रीमद् भागवत, महाभारत, बाल्मीकि, रामायण, श्रीराम चरितमानस इसकी भी शिक्षा हम सबको प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि हम हनुमान जी जैसे बलवान हैं, तब भी हमें जामवंत जैसे वृद्ध व्यक्ति की आवश्यकता पड़ेगी, जब तक हमारा राष्ट्र के प्रति प्रेम नहीं है भगवान के प्रति प्रेम नहीं है हमारे अंदर संस्कार नहीं है, तब तक हमारा जीवन बिन नाव की पतवार की तरह है। रामचरितमानस के हिसाब से भाई-भाई का प्रेम कैसा होना चाहिए, पिता और पुत्र का प्रेम कैसा होना चाहिए, मित्रता कैसी होना चाहिए, इसको हमें सीखना है, समझना है तो अपने जीवन में उतारना है, रामचरित मानस अवश्य सुनना और पढऩा चाहिए।


महामण्डलेश्व श्री रामभूषण दासजी ने आगे कहा कि हम कथा जब सुनने आते हैं तो बच्चों को भी साथ लेकर आया करें, क्योंकि पांच वर्ष की आयु में ही ध्रुव जी महाराज ने छह महीने में भगवान की प्राप्ति कर ली थी। उन्होंने कहा कि राष्ट्र उन्नति के लिए भक्ति के साथ में राष्ट्रभक्ति भी होना चाहिए, आश्रम में बैठकर संत भगवान की आराधना करते हैं, वैसे ही भारत की सीमा पर खड़े होकर के भारत माता की सैनिक राष्ट्र भक्ति करते हैं, माताओं को माता जानकी के पद चिन्हों पर पर चलना चाहिए, सास-ससुर की सेवा कैसे करना चाहिए, परिवार में व्यवहार कैसा होना चाहिए, यह माता जानकी का जीवन हमें बताता है।
श्रीमद् भगवत कथा सुनने के लिए हजारों की संख्या में भक्तों उपस्थित हुए। कथा की समाप्ति पर भव्य भगवत आरती का आयोजन किया गया। आरती के बाद संत भंडारा हुआ। इस अवसर पर कथा यजमान जगदीश प्रसाद बरुआ सहित बड़ी संख्या में संतजन मौजूद थे।