पुण्य के फल से जो वैभव और संपदा मिली है उसका त्याग करो : विनम्र सागर

आचार्यश्री विनम्र सागर महाराज ससंघ का हुआ मंगल प्रवेश

ग्वालियर, 26 अप्रैल। धन कमाने के लिए तो चीन अमेरिका और न जाने कहां-कहां आसमान लांघ कर चले जाते हो, लेकिन धर्म कमाने के लिए जिनको जिन मन्दिर दूर लगते हैं और जो देव शास्त्र और गुरु के पास आने से घवड़ाते हैं, उनके लिए ही नरक का द्वार पास होता है। यह बात मंगलवार को आचार्य श्री विनम्र सागर महाराज ने मंगल प्रवेश के दौरान नई सड़क स्थित चंपाबाग जैन धर्मशाला में धर्मचर्चा को संबोधिक करते हुए व्यक्त किए।


आचार्य श्री विनम्र सागर महाराज ने कहा कि पहले आत्मानुभूति के लिए योग्य वातावरण तो बनाओ, पाप तो छूट नहीं पा रहा और पुण्य को हैय बताकर उस पुण्य को छोडऩे बात की करते हो, जिस पुण्य के कारण वर्तमान में सुख भोग रहे हो यदि छोडऩा ही है, तो उस पुण्य के फल को छोड़ो? पुण्य के फल से जो वैभव और संपदा मिली है, उसका त्याग करो। आचार्यश्री ने कहा कि पुण्य को भोगने में ही पाप शुरू हो जाता है, पुण्यकर्म से जो धन वैभव और संपदा आपको मिली है, उसका उपयोग यदि इन्द्रिय सुख और विषय के पोषण में लगा दिया तो उसका धन थाना, कचहरी तथा अस्पतालों में ही जाता है। जो लोग अपने पुण्य का सदुपयोग जिनायतनों में कर देव शास्त्र और गुरु की भक्ती में लगाते है, उनका ही पुण्य फलता है। आचार्यश्री का प्रवेश राजेश लाला मित्र मण्डल, दिगंबर जैन युवा जागरण मंच व समाजजनों ने कराया।

आचार्यश्री विनम्र सागर ससंघ ने सोनागिर पंचकल्याक महोत्सव के लिए किया पद विहार

जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि आचार्य श्री विनम्र सागर महाराज ससंघ ने मंगलवार को शाम को नई सड़क स्थित चंपाबाग धर्म शाला से जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिर के लिए मंगल पद विहार किया। आचार्यश्री के सानिध्य में पांच से 11 मई तक श्रीमद् जिनेन्द्र पंच कल्याणक महोत्सव आयोजित होगा। रात्रि विश्राम विक्की फैक्टरी पर होगा। 27 अप्रैल को सुबह आचार्यश्री ससंघ की आहारचार्य मालवा कालेजा पर सपंन्न होगी।

जैन मुनिश्री 24 घण्टे में मात्र एक बार करते हैं भोजन ग्रहण

जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि जैन संत 24 घण्टे में मात्र एक बार ही आहार (भोजन) ग्रहण करते हैं। जब जैन आचार्यश्री या मुनिश्री आहार लेने निकलते हैं तो भक्तगण अपने हाथों में पूजन की साम्रगी, फल आदि लेकर पडग़ाहन करते है। मुनिश्री के नियमानुसार जिनके हाथों में फल, सामग्री पर दृष्टि पड़ती है तो वह खड़े हो जाते है। वह भक्त आचार्य व मुनिश्री की तीन परिक्रमा लगाकर मन, वचन, काया, आहार जल शुद्ध है भोजन शाला में प्रवेश कीजिए कहता है। इसके बाद आचार्य व मुनिश्री आहार के लिए चल पड़ते हैं।